शनिवार, 13 दिसंबर 2008

ब्रह्मज्ञानावली

।। ब्रह्मज्ञानावली माला ।।
सकृच्छ्रवणमात्रेण ब्रह्मज्ञानं यतो भवेत् ।
ब्रह्मज्ञानावलीमाला सर्वेषां मोक्षसिद्धये ।।१।।
असङ्गोऽहमसङ्गोऽहमसङ्गोऽहं पुनः पुनः । 
सच्चिदानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।२।।
नित्यशुद्धविमुक्तोऽहं निराकारोऽहमव्ययः । 
भूमानन्दस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।३।।
नित्योऽहं निरवद्योऽहं निराकारोऽहमुच्यते । 
परमानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।४।। 
शुद्धचैतन्यरूपोऽहमात्मारामोऽहमेव च ।
अखण्डानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।५।।
प्रत्यक्चैतन्यरूपोऽहं शान्तोऽहं प्रकृतेः परः । 
शाश्वतानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।६।।
तत्त्वातीतः परात्माहं मध्यातीतः परः शिवः ।
मायातीतः परंज्योतिरहमेवाहमव्ययः ।।७।।
नानारूपव्यतीतोऽहं चिदाकारोऽहमच्युतः । 
सुखरूपस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।८।।
मायातत्कार्यदेहादि मम नास्त्येव सर्वदा ।
स्वप्रकाशैकरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।९।।
गुणत्रयव्यतीतोऽहं ब्रह्मादीनां च साक्ष्यहम् ।
अनन्तानन्तरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।१०।।
अन्तर्यामिस्वरूपोऽहं कूटस्थः सर्वगोऽस्म्यहम् ।
परमात्मस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।११।। 
निष्कलोऽहं निष्क्रियोऽहं सर्वात्माद्यः सनातनः ।  
अपरोक्षस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।१२।। 
द्वन्द्वादिसाक्षिरूपोऽहमचलोऽहं सनातनः ।  
सर्वसाक्षिस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।१३।। 
प्रज्ञानघन एवाहं विज्ञानघन एव च ।  
अकर्ताहमभोक्ताहमहमेवाहमव्ययः ।।१४।। 
निराधारस्वरूपोऽहं सर्वाधारोऽहमेव च ।  
आप्तकामस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ।।१५।। 
तापत्रयविनिर्मुक्तो देहत्रयविलक्षणः ।  
अवस्थात्रयसाक्ष्यस्मि चाहमेवाहमव्ययः ।।१६।। 
दृग्दृश्यौ द्वौ पदार्थौ स्तः परस्परविलक्षणौ ।  
दृग्ब्रह्म दृश्यं मायेति सर्ववेदान्तडिण्डिमः ।।१७।। 
अहं साक्षीति यो विद्याद्विविच्यैवं पुनः पुनः ।  
स एव मुक्तः सो विद्वानिति वेदान्तडिण्डिमः ।।१८।। 
घटकुड्यादिकं सर्वं मृत्तिकामात्रमेव च ।  
तद्वद्ब्रह्म जगत्सर्वमिति वेदान्तडिण्डिमः ।।१९।। 
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः ।  
अनेन वेद्यं सच्छास्त्रमिति वेदान्तडिण्डिमः ।।२०।। 
अन्तर्ज्योतिर्बहिर्ज्योतिः प्रत्यग्ज्योतिः परात्परः ।  
ज्योतिर्ज्योतिः स्वयंज्योतिरात्मज्योतिः शिवोऽस्म्यहम् ।।२१।। 
।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ ब्रह्मज्ञानावलीमाला संपूर्णा।।

रविवार, 30 नवंबर 2008

मन की बात

आप की यादें मन मस्तिष्क पर हमेशा छाई रहती हैं ,मैं लाख चाह कर भी उन्हें मिटा नहीं पाता.आज यदि आप अपने परिवर्तित परिवेश को देखते तो निश्चित रूप से आप की आयु में स्वतःही वृद्धि हो जाती.सब कुछ आप का चाहा हुआ ही हो रहा है मैं समझता हूँ कि आपकी इच्छा शक्ति मेरे ऊपर एक आशीर्वाद बन कर बरस रही है.सभी उसके गवाह हैं परन्तु एक आप ही स्थूल रूप से यहाँ नहीं हैं फिर भी मैं समझता हूँ कि आप जहाँ भी होंगे अपनी तप शक्ति से यह सब जरूर देख रहे होंगे.मैंने भी बहुत से सपने बुने थे सोचा था आप के साथ उन सपनों को साकार होता हुआ देख कर मैं अपने भाग्य पर इतराता फिरूंगा परन्तु अफसोस ऐसा नहीं हो सका.आखिर आप ने मेरा साथ छोड़ ही दिया.फिर भी मैं आपके आशीर्वाद कि कृपा जरूर चाहता रहूँगा इस विश्वाश के साथ कि आप की यह कृपा मुझ पर ऐसे ही निरंतर बरसती रहेगी..................

बुधवार, 26 नवंबर 2008

स्वप्निल

स्वप्न की झील में तर रहा , मेरे मन का सुकोमल कमल ।
मखमली वक्ष पर सस्य के , मोतियों की हैं लड़ियाँ तरल ।।

दूर जैसे क्षितिज के परे , झुक रहा है धरा पर गगन ।
दूधिया चांदनी रात में, हो रहा दो दिलों का मिलन ।।

मौन इतना मुखर हो उठे, ग्रंथियां दिल कि सब खोल दे ।
एकरसता सरसता बढ़े, भावना खुद-ब-खुद बोल दे ।।

दूर या पास अपने रहें, ज़िन्दगी किन्तु हँसती रहे ।
मान-मनुहार की, प्यार की, याद प्राणों को कसती रहे ।।

इस तरह मन बहलता रहे, सर्जनाएँ सदा हों सफल ।
चिर पिपासा मिटे इस तरह, नित छलकता रहे स्नेह-जल ।।

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

ईश्वर कृपा

ईश्वर की कृपा से मानव को संतों का सान्निध्य प्राप्त होता है। प्रेम प्रभु का दिव्य प्रसाद है। माता-पिता, गुरु की लगन से सेवा करने एवं दीन दुखियों की मदद करने से व्यक्ति के मन में मानवता रूपी प्रेम उत्पन्न हो जाता है जिससे उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। भक्ति की भावना जागृत होने पर ही ज्ञान की प्राप्ति सम्भव है। मानव को सदैव परमेश्वर की शरण लेनी चाहिए। नाम संकीर्तन से न केवल वातावरण शुद्ध होता है अपितु हमारी भक्ति पुष्ट होती है, मन शुद्ध होता है, क्रिया में अमंगलता का नाश होता है और अन्तिम काल में ईश्वर का साथ होने से मृत्यु का भय नहीं रहता।