मंगलवार, 21 जून 2011

शिव पंचाक्षर स्तोत्रं

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै "न" काराय नमः शिवायः॥१॥

(हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (सूर्य,चन्द्र एवं अग्नि के समान तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भष्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। (दसों) दिशाओं को वस्त्र के रूप में धारण करने वाले दिगंबर शिव, आपके "न" अक्षर द्वारा जाने गए स्वरूप को नमस्कार है।)

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय|
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै "म" काराय नमः शिवायः॥२॥

(गंगाजल द्वारा शोभायमान एवं चन्दन से अलंकृत हे नन्दीके अधिपति,प्रमथ गणोंके स्वामी, हे महेश्वर ! मंदार पुष्प एवं अन्य अनेक पुष्पों द्वारा आपकी अर्चना हुई है।आपके ‘म’अक्षर द्वारा जाने गये स्वरूप को नमस्कार है।)

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥३॥

(हे परम कल्याणकारी स्वरूप ! आप माँ पार्वतीजी के मुखकमल पर प्रसन्नता लाने वाले सूर्य स्वरूप हो ! हे धर्म [वृषभ] ध्वजाधारी, हे नीलकंठ शिवजी आपके ‘शि’ अक्षर द्वारा जाने गये स्वरूपको नमस्कार है !)

वसिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय|
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥४॥

(वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मुनियों एवं ईन्द्र आदि देवगणों द्वारा आपके मस्तक की पूजा हुई है | देवाधिदेव ! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि के सामन आपके तीन नेत्र हैं। हे शिव ! आपके "व" अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को नमस्कार है।)

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥५॥

(हे यज्ञस्वरूप, हे जटाधारी , हे पिनाकधारी आप सनातन दिव्य पुरुष हैं ! हे दिगंबर देव शिवजी ! आपके ‘य’ अक्षरसे जाने गये स्वरूप को प्रणाम है।)

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

(जो कोई यह पवित्र पंचाक्षरी स्तोत्र का नित्य पठन करता है उसे शिवलोक प्राप्त होता है एवम शिवजीके सानिध्य का सुख प्राप्त होता है।)

रविवार, 19 जून 2011

शिव मानस पूजा

॥श्री शिव मानस पूजा॥

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम॥
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌॥

(मैं ऐसी भावना करता हूँ, कि हे दयालु पशुपति देव! संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप विराजमान होइए। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूँ। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित करता हूँ। केसर-कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूँ। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित करता हूँ। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक आपको मानसिक रूप से समर्पित करता हूँ, आप ग्रहण कीजिए। )

सौवर्णे नवरत्न खंडरचिते पात्र धृतं पायसं।
भक्ष्मं पंचविधं पयोदधि युतं रम्भाफलं पानकम्‌॥
शाका नाम युतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

(मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, उसमें खीर, दूध और दही सहित पाँच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। हे कल्याण करने वाले! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।)

छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं।
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा॥
साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं ममा।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥

(हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चँवर और पंखा झल रहा हूँ। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है, भी प्रस्तुत है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियाँ आपकी प्रसन्नता के लिए आपको अर्पित की जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूँ। प्रभो! मेरी यह नाना प्रकार से स्तुति की पूजा को आप कृपया ग्रहण करें।)

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥

(हे शंकरजी, आप मेरी आत्मा हैं। आपकी शक्ति पार्वतीजी मेरी बुद्धि हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूँ, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूँ, वह आपकी आराधना ही है।)

कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥

(हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं। वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले नाथ श्री महादेवजी, आपकी जय हो। जय हो।)

हे मातृभूमि, तुम्हें प्रणाम!

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।

(हे मातृभूमि, तुम्हें प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।)

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।

(हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर! इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुए है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दें। हमें ऐसी शक्ति दीजिये कि हम इस पूरे विश्व को जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारे सामने नतमस्तक हो सके। यह रास्ता काटों से भरा हुआ है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम बना कर काँटों से रहित करेंगे।)

समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।

(ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदैव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।)

भारत माता की जय ।।