हरि अनंत हरि कथा अनंता..................................... ........................................................मैं असंग हूँ, मैं असंग हूँ, मैं सदा सर्वदा असंग हूँ........
रविवार, 30 नवंबर 2008
मन की बात
आप की यादें मन मस्तिष्क पर हमेशा छाई रहती हैं ,मैं लाख चाह कर भी उन्हें मिटा नहीं पाता.आज यदि आप अपने परिवर्तित परिवेश को देखते तो निश्चित रूप से आप की आयु में स्वतःही वृद्धि हो जाती.सब कुछ आप का चाहा हुआ ही हो रहा है मैं समझता हूँ कि आपकी इच्छा शक्ति मेरे ऊपर एक आशीर्वाद बन कर बरस रही है.सभी उसके गवाह हैं परन्तु एक आप ही स्थूल रूप से यहाँ नहीं हैं फिर भी मैं समझता हूँ कि आप जहाँ भी होंगे अपनी तप शक्ति से यह सब जरूर देख रहे होंगे.मैंने भी बहुत से सपने बुने थे सोचा था आप के साथ उन सपनों को साकार होता हुआ देख कर मैं अपने भाग्य पर इतराता फिरूंगा परन्तु अफसोस ऐसा नहीं हो सका.आखिर आप ने मेरा साथ छोड़ ही दिया.फिर भी मैं आपके आशीर्वाद कि कृपा जरूर चाहता रहूँगा इस विश्वाश के साथ कि आप की यह कृपा मुझ पर ऐसे ही निरंतर बरसती रहेगी..................
बुधवार, 26 नवंबर 2008
स्वप्निल
स्वप्न की झील में तर रहा , मेरे मन का सुकोमल कमल ।
मखमली वक्ष पर सस्य के , मोतियों की हैं लड़ियाँ तरल ।।
दूर जैसे क्षितिज के परे , झुक रहा है धरा पर गगन ।
दूधिया चांदनी रात में, हो रहा दो दिलों का मिलन ।।
मौन इतना मुखर हो उठे, ग्रंथियां दिल कि सब खोल दे ।
एकरसता सरसता बढ़े, भावना खुद-ब-खुद बोल दे ।।
दूर या पास अपने रहें, ज़िन्दगी किन्तु हँसती रहे ।
मान-मनुहार की, प्यार की, याद प्राणों को कसती रहे ।।
इस तरह मन बहलता रहे, सर्जनाएँ सदा हों सफल ।
चिर पिपासा मिटे इस तरह, नित छलकता रहे स्नेह-जल ।।
मंगलवार, 25 नवंबर 2008
ईश्वर कृपा
ईश्वर की कृपा से मानव को संतों का सान्निध्य प्राप्त होता है। प्रेम प्रभु का दिव्य प्रसाद है। माता-पिता, गुरु की लगन से सेवा करने एवं दीन दुखियों की मदद करने से व्यक्ति के मन में मानवता रूपी प्रेम उत्पन्न हो जाता है जिससे उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। भक्ति की भावना जागृत होने पर ही ज्ञान की प्राप्ति सम्भव है। मानव को सदैव परमेश्वर की शरण लेनी चाहिए। नाम संकीर्तन से न केवल वातावरण शुद्ध होता है अपितु हमारी भक्ति पुष्ट होती है, मन शुद्ध होता है, क्रिया में अमंगलता का नाश होता है और अन्तिम काल में ईश्वर का साथ होने से मृत्यु का भय नहीं रहता।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)