हरि अनंत हरि कथा अनंता..................................... ........................................................मैं असंग हूँ, मैं असंग हूँ, मैं सदा सर्वदा असंग हूँ........
रविवार, 30 नवंबर 2008
मन की बात
आप की यादें मन मस्तिष्क पर हमेशा छाई रहती हैं ,मैं लाख चाह कर भी उन्हें मिटा नहीं पाता.आज यदि आप अपने परिवर्तित परिवेश को देखते तो निश्चित रूप से आप की आयु में स्वतःही वृद्धि हो जाती.सब कुछ आप का चाहा हुआ ही हो रहा है मैं समझता हूँ कि आपकी इच्छा शक्ति मेरे ऊपर एक आशीर्वाद बन कर बरस रही है.सभी उसके गवाह हैं परन्तु एक आप ही स्थूल रूप से यहाँ नहीं हैं फिर भी मैं समझता हूँ कि आप जहाँ भी होंगे अपनी तप शक्ति से यह सब जरूर देख रहे होंगे.मैंने भी बहुत से सपने बुने थे सोचा था आप के साथ उन सपनों को साकार होता हुआ देख कर मैं अपने भाग्य पर इतराता फिरूंगा परन्तु अफसोस ऐसा नहीं हो सका.आखिर आप ने मेरा साथ छोड़ ही दिया.फिर भी मैं आपके आशीर्वाद कि कृपा जरूर चाहता रहूँगा इस विश्वाश के साथ कि आप की यह कृपा मुझ पर ऐसे ही निरंतर बरसती रहेगी..................
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1 टिप्पणी:
मन की बात में,अपने आदरनीय जनों को असमय खोने का दर्द झलकता है,साथ ही उनके प्रति आप की असीम प्रेम,अनुराग को भी दर्शाता है.
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