मंगलवार, 25 नवंबर 2008

ईश्वर कृपा

ईश्वर की कृपा से मानव को संतों का सान्निध्य प्राप्त होता है। प्रेम प्रभु का दिव्य प्रसाद है। माता-पिता, गुरु की लगन से सेवा करने एवं दीन दुखियों की मदद करने से व्यक्ति के मन में मानवता रूपी प्रेम उत्पन्न हो जाता है जिससे उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। भक्ति की भावना जागृत होने पर ही ज्ञान की प्राप्ति सम्भव है। मानव को सदैव परमेश्वर की शरण लेनी चाहिए। नाम संकीर्तन से न केवल वातावरण शुद्ध होता है अपितु हमारी भक्ति पुष्ट होती है, मन शुद्ध होता है, क्रिया में अमंगलता का नाश होता है और अन्तिम काल में ईश्वर का साथ होने से मृत्यु का भय नहीं रहता।

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